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फसलों की कटाई

एक घंटे में होगी एक एकड़ गेहूं की कटाई, मशीन पर सरकार की भारी सब्सिडी

एक घंटे में होगी एक एकड़ गेहूं की कटाई, मशीन पर सरकार की भारी सब्सिडी

इस सीजन में किसानों को कटाई के लिए मशीने भी कम कीमतों पर दी जाती हैं. जिनकी मदद से गेहूं कटाई में काफी समय लगता है. गेहूं के अच्छे उत्पादन के लिए किसान भी काफी मेहनत करते हैं. 

हालांकि गेहूं की फसल पककर तैयार हो चुकी है. जिसके बाद जल्द कटाई का काम भी शुरू हो जाएगा. इसमें समय, मेहनत और लागत कम करने के लिए कृषि मशीनों का उपयोग किये जाने की सलाह दी जाती है. 

लेकिन मशीनों से कटाई और गहाई के के बाद अक्सर पराली की समस्या हो जाती है. कटाई के बाद निकली फूंस को जानवरों के चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है. देश के अलग अलग राज्य की सरकारें मशीनों को खरीदने के लिए सब्सिडी देती है. 

 राजस्थान के कोटा में कुछ दिन पहले कृषि मोहत्सव का आयोजन हुआ था. जिसमें ऐसी ही एक मशीनरी आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी. इस मशीन का नाम रीपर ग्राइंडर था. 

इस मशीन की सबसे बड़ी खासियत यही है कि, ये मात्र एक घंटे में एक एकड़ गेहूं की फसल की कटाई कर सकती है. अगर किसान इस मशीन को खरीदता है, तो राज्य सरकार की तरफ से इसमें 50 फीसद तक सब्सिडी मिलती है.

रीपर ग्राइंडर के बारे में

इस मशीन से गेहूं की फसल काटने के लिए 5 से 10 मजदूरों की जरूरत पड़ सकती है. 10 एचपी के इंजन वाली मशीन की मदद से सिर्फ एक घंटे में एक एकड़ फसल की कटाई हो सकती है. 

रीपर ग्राइंडर की मदद से गेहूं के अलावा जौ, बाजरा, सरसों, धान की फसलों की कटाई कर सकते हैं. रीपर ग्राइंडर ना सिर्फ फसलों की कटाई करती है बल्कि, उपज को साइड में फैला देती है. 5 फीट तक की लंबी फसल की कटाई इस मशीन से की जा सकती है. एक घंटे चलाने के लिए इस मशीन में एक लीटर तेल लग जाता है. 

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सरकार की तरफ से मिलता है अनुदान

अगर किसान इस मशीन को खरीदना चाहते हैं, तो वो इसका कोई भी साइज़ चुन सकते हैं. जिसकी कीमत 50 हजार से लेकर 5 लाख रुपये तक हो सकती है. जिसके लिए सरकार की ओर से 50 फीसद तक सब्सिडी दे रही है. 

रीपर ग्राइंडर को खरीदने के लिए किसान को मशीन के डीलर से कोटेशन लेना पड़ेगा. जो अपने जिले के कृषि विभाग के ऑफिस में जमा करना होगा. इस मशीन को खरीदने के लिये कुछ जरूरी कागजों की जरूरत पड़ती है.

जिसमें आधार कार्ड की कॉपी, जमीन के कागज, बैंक की पासबुक की कॉपी शामिल है. इसके अलावा ई-मित्र सेंटर की मदद से ऑनलाइन आवेदन भी कर सकते हैं.

इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

बीते खरीफ सीजन की कटाई के दौरान जलने वाली पराली से जनता का सांस तक लेने में दिक्क्त पैदा करदी थी। परंतु फिर भी एक गांव में एक भी पराली नहीं  जलाई गयी थी। बल्कि इस गांव में पराली द्वारा बहुत सारी समस्याओं का निराकरण किया गया है। अक्टूबर-नवंबर माह के दौरान खरीफ फसलों की कटाई उपरांत देश में पराली जलाने की परेशानी चिंता का विषय बन जाती है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब से लेकर के बहुत सारे गांव में किसान धान काटने के उपरांत बचे-कुचे अवशेष को आग के हवाले कर देते हैं, इस वजह से बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषित होता है। यह धुआं हवा में उड़ते हुए   शहरों में पहुंच जाता है एवं लोगों के स्वास्थ्य पर अपना काफी प्रभाव डालता है। साथ ही, खेत में अवशेष जलने की वजह से खेती की उर्वरक ताकत कम हो जाती है। इन समस्त बातों से किसानों में सजगता एवं जागरुकता लाई जाती है, इतना करने के बाद भी बहुत सारे किसान मजबूरी के चलते पराली में आग लगा देते हैं। अब हम बात करेंगे उस गांव के विषय में, जहां पर पराली जलाने का एक भी मामला देखने को नहीं मिला है। इस गांव में किसान पूर्व से ही सजग एवं जागरूक हैं एवं खुद से कृषि से उत्पन्न फसल अवशेषों को जलाने की जगह पशुओं के चारे एवं मल्चिंग खेती में प्रयोग करते हैं। इसकी सहायता से गांव में ना तो पशु चारे का कोई खतरा होता है एवं ना ही प्रदूषण, साथ ही, पशुओं के दुग्ध के और फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है। किसानों को बेहतर आय अर्जन में बेहद सहायता मिलती है।

किसानों की पहल काबिले तारीफ है

किसान तक की खबर के अनुसार, झारखंड राज्य भी धान का एक प्रमुख उत्पादक राज्य माना जाता है। झारखंड के किसानों द्वारा भी खरीफ सीजन में धान का उत्पादन करते हैं। परंतु इस राज्य में पराली जलाने के अत्यधिक कम मामले देखने को मिले हैं। यहाँ बहुत से गांवों में बहुत वर्षों से पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हुई है। अब यह किसानों की समझदारी और जागरुकता का परिचय देती है। खबरों के मुताबिक, झारखंड राज्य के अधिकाँश किसानों द्वारा धान की कटाई-छंटाई हेतु थ्रेसिंग उपकरणों का प्रयोग किया गया है। इसके उपरांत पराली को खेत में ही रहने दिया जाता है, जिससे कि यह मृदा में गलने के बाद खाद में तब्दील हो जाए अथवा सब्जी की खेती हेतु मल्चिंग के रूप में पराली का समुचित प्रयोग किया जा सके। हालांकि, कई सारे किसान इस पराली को घर भी उठा ले जाते हैं।

पराली से बनाया जा रहा है पशु चारा

बतादें, कि केवल झारखंड के गांव ही नहीं बल्कि देश में बहुत सारे गांव ऐसे हैं, जिन्होंने शून्य व्यर्थ नीति को अपनाया है। मतलब कि, फसल अवशेषों में आग नहीं लगाई जाती है, बल्कि उसको पशुओं के चारे हेतु तथा पुनः खेती में ही प्रयोग किया जाता है। बहुत सारे गांव में इस पराली द्वारा पशुओं हेतु सूखा चारा निर्मित किया जाता है, जिसको भुसी अथवा कुटी के नाम से जाना जाता है।


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पराली से निर्मित चारे में मवेशियों के लिए काफी पोषक तत्व एवं देसी आहार विघमान होते हैं, जिससे कि पशु भी चुस्त दुरुस्त व स्वस्थ रहते हैं। साथ ही, बेहतर दूध भी प्राप्त हो पायेगा। भारत में चारे की बढ़ती कीमतों की सबसे मुख्य वजह यह है, कि जिस पराली को पूर्व में पश चारे के रूप में उपयोग किया जाता था।  विडंबना की बात यह है, कि आज पराली को जला दिया जाता है। बहुत सारे स्थानों पर पशुपालन की जगह मशीनों का उपयोग बढ़ रहा है, इस वजह से चारे और दूध दोनों के दाम बढ़ रहे हैं । विशेषज्ञों का कहना है, कि बहुत सारे गांव में लंपी के बढ़ते संक्रमण के मध्य पशुपालन में बेहद कमी देखने को मिली है। फिलहाल, चारे को खाने के लिए पशु ही नहीं होंगे, तो पराली भी किसी कार्य की नहीं है। इसलिए ही किसान पराली को आग लगा देते हैं, हालाँकि किसान यदि चाहें तो अन्य राज्यों में अथवा अन्य चारा निर्माण करने वाली इकाइयों को पराली विक्रय कर आय कर सकते हैं।

पराली से इस प्रकार होती है आमदनी

झारखंड राज्य में रहने वाले किसान रामहरी उरांव का कहना है, कि पूर्व में किसान पारंपरिक तौर से कृषि करते थे। फसल कटाई के उपरांत जो अवशेष बचते थे, उसे पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता था। खेत में ही इन अवशेषों को सड़ाकर खाद में तब्दील किया जाता था। उनका कहना है, कि वर्तमान में भी उनके गांव में पराली से पशुओं हेतु कुटी निर्मित की जाती है, जिसमें चोकर इत्यादि का मिश्रण कर पशुओं को खिलाते हैं। बहुत सारे किसान फसल अवशेषों को मल्चिंग के रूप में उपयोग करते हैं। यह पूर्णतया पर्यावरण के अनुकूल एवं जैविक है, जिसे खेत में फैलाने से मृदा को बहुत सारे लाभ अर्जित होते हैं। इसी वजह से बहुत सारे किसान पराली को जलाने की जगह फसल की पैदावार में वृद्धि हेतु खेती में प्रयोग करते हैं।
फसलों की होगी अच्छी कटाई, बस ध्यान रखनी होंगी ये बातें

फसलों की होगी अच्छी कटाई, बस ध्यान रखनी होंगी ये बातें

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश कहलाता है. जहां पर बड़ी मात्रा में लगभग हर हिस्से में खेती की जाती है. देखा जाए तो यह मौसम रबी की फसलों का है. हालंकि कीं सर्दियों के मौसम से लेकर बारिश के मौसम के बीच में इसकी फसलों की बुवाई की है, बात फसलों की कटाई की करें, तो रबी की फसलों की कटाई मार्च के महीने से अप्रैल महीने के बीच की जाती है. अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि, फसलों की कटाई तो सभी कर लेते हैं, लेकिन क्या वो इससे जुड़ी बातों का ध्यान रख पाते हैं? तो आपको बता दें कि, खेती किसानी में फसलों की कटाई बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है. हालांकि आजकल श्रमिकों कि उपलब्धता और बहुत ज्यादा श्रमिकी किसानों के लिए बेहद गंभीर समस्या बनकर सामने आ रही है. परम्परागत रूप से कटाई का महीनों तक हलने वाला काम अब मशीनों की मदद से बेहद कम दिनों में पूरा हो जाता है. अगर फसलों की समय पर कटाई नहीं की गयी तो उनके खराब होने की आशंका बढ़ जाति है. साथ ही अगली फसल की बुवाई में भी देरी हो जाती है. जिससे किसानों को फसलों की उपज कम मिलती है. अज के समय में कटाई के लिए काफी मशीनों का विकल्प बाजार में उपलब्ध है. फसलों की कटाई के लिए किसान उन्नत हंसिया, पैदल चलाने वाला वर्टिकल कन्वेयर रीपर, बैठकर चलाने वाला कन्वेयर रीपर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा किसान चाहे तो पॉवर टिलर चलित रीपर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं अगर आप दांतेदार हसिया का इस्तेमाल करते हैं, तो आपको कम मेहनत करनी पड़ सकती है. इससे उत्पादकता भी बढ़ती है. इतना ही नहीं कटाई के बाद किसान यंत्रों के इस्तेमाल से फसलों की गहाई भी कर सकते हैं. वहीं छोटे किसानों की बात करें तो वो दस अश्वशक्ति वाली गहाई मशीनों का इस्तेमाल अपनी फसलों को काटने में कर सकते हैं. अब ऐसे में ये बात तो हुई फसलों की कटाई में इस्तेमाल किये जाने वाले यंत्रों की. जो आपकी फसल की बढ़िया तरीके कटाई भी करेंगे और निराई करने में भी मदद करेंगे. लेकिन बात जब फसलों की कटाई की ओर ध्यान रखने योग्य बातों की हो, तो उसे नजरअंदाज बिलकुल भी नहीं करना चाहिए. खेतों में रबी के सीजन की फसलों की कटाई का काम शुरू हो चुका है, इस सीजन की फसलों को उगाने के लिए ज्यादातर कम तापमान की जरूरत होती है. जिस वजह से इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर के महीने के बीच में होती है. तो चलिए जान लेते हैं, कौन सी फसल की कटाई के वक्त कौन कौन सी बातों पर ध्यान देना जरूरी है.

पकी हो फसल

जब फसल पक जाती है, तो उसकी कटाई की बारी आती है. ऐसी स्थिति में किसान जब भी फसलों को काटने की तैयारी करेंम तो इस बात को सुनिश्चित कर लें कि, वो फसल कटने लायक हुई है या नहीं. आपको इस बात का ज्यादा ध्यान रखना है कि, कटाई के वक्त फसल पूरी तरह से पकी हुई और सूखी होनी चाहिए. इससे कटाई का काम आसान हो जाता है. ये भी देखें: एक घंटे में होगी एक एकड़ गेहूं की कटाई, मशीन पर सरकार की भारी सब्सिडी

मिट्टी न हो ज्यादा गीली

फसलों की कटाई के समय इस बात का भी ध्यान रखन बेहद महत्वपूर्ण है कि, मिट्टी में जरूरत से ज्यादा नमी ना हो. अगर मिट्टी ज्यादा गीली हुई तो कटाई के काम में मुश्किल खड़ी हो सकती है. और फसलें खराब हो सकती हैं.

सहूलियत के हिसाब से करें कटाई

खेती करने वालों में छोटे किसान भी हैं, और बड़े किसान भी. अगर आपकी खेती छोटे स्तर पर है तो आप फसलों की कटाई हाथों से भी कर सकते हैं. वहीं अगर आप व्यापक स्तर पर खेती करते हैं, तो आपको आधुनिक कम्बाइनों की जरूरत पड़ सकती है. हालंकि आजकल बाजार में कई तरह के विकल्प भी उपलब्ध हैं. जिनका इस्तेलाम अगर चाहें तो कर सकते है.

खेतों में न छोड़ें पराली

अगर आपने अपनी फसल की कटाई कम्बाइन से की है तो कटाई के बाद क्काफी हद तक पराली भी रह जाती है. अब ऐसे में बची हुई पराली को ज्यादा देर तक खेतों में नहीं छोड़ना चाहिए. क्योंकि इससे वो जरूरत से ज्यादा सूख जाएगी. जिस वजह से उसकी तुड़ी कम बनती है.

ना जलाएं पराली

फसल की कटाई के बाद गेंहूं की बची हुई पराली को काफी किसान आग लगा देते हैं. जोकि करना बिलकुल गलत है. पराली को कभी भी नहीं जलाना चाहिए. इससे मिट्टी के अंदरूनी हिस्से के साथ साथ अच्छे और जरुरतमन्द कीटों और वातावरण को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचता है.

मशीन के काट रहे हैं फसल तो रहें सावधान

अगर आप मशीन की मदद से फसल काट रहे हैं, तो आपको ज्यादा से ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आगजनी की सबसे ज्यादा घटनाएं बिजली के शार्ट सर्किट की वजह से होती हैं. ऐसी स्थिति में किसान अपनी फसलों के ढेर को बिजली लेने के आस पास ना रखकर दूर रखें. इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखें की फसल काटने वाली कम्बाइन की ऊंचाई ज्यादा होती है. इसलिए बिजली की लाइन वाली क्षेत्र में जब भी फसल काटें तो तारों पर जरुर ध्यान रखें. इस सीजन में गेहूं की फसल की कटाई का काम तेजी से हो रहा है. बात रबी की फसल की कटाई की करें, तो किसान भी खेतों में युद्धस्तर पर लगे हुए हैं. गेहूं के अलावा, सरसों और मोटे अनाजों की कटाई का काम जोरों पर किया जा रहा है. बता दें फरवरी के मौसम में ही गर्मी ने अपने तेवर दिखने शुरू कर दिए हैं. जिस वजह से तापमान भी बढ़ना शुरू हो गया है. जिसका असर खेतों में कड़ी फसलों पर पड़ रहा है. जिस वजह से अधिकांश क्षेत्रों में फसलों की कटाई शुरू हो चुकी है.
फसल की कटाई के बाद भंडारण की सम्पूर्ण जानकारी, जाने यहां

फसल की कटाई के बाद भंडारण की सम्पूर्ण जानकारी, जाने यहां

किसानो द्वारा ज्यादातर फसल का भंडारण घरों में विभिन्न तरीको से किया जाता हैं। फसल की कटाई के बाद उसका भंडारण करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। फसल का स्टॉक नमी वाली जगहों पर न करें , क्यूंकि नमी की वजह से फसल में दीमक और अन्य बैक्टीरिया जैसे रोगों के लगने की संभावनाएं होती है। फसल का स्टॉक यदि बोरों में किया जाता हैं ,तो नीचे फर्श पर लकड़ी के तख्ते ,या फिर चटाई आदि बिछा दी जाती हैं ताकि फसल सुरक्षित रह सके। 


कटाई के बाद फसल का भण्डारण कैसे करे

फसल की कटाई के बाद किसानो द्वारा कुछ फसल को बीज के लिए और कुछ फसल को अपने उपयोग के लिए स्टोर कर लिया जाता है। किसानो द्वारा जो फसल अपने लिए रखी जाती हैं ,उसका भण्डारण वो ड्रम या अन्य किसी बंद मुँह वाले कंटेनर में करते हैं। ताकि जरुरत पड़ने पर उसका उपभोग किया जा सके।

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फसल का भण्डारण करते समय बरती जाने वाली सावधानियां 

बीज के लिए जो भण्डारण किया जाता हैं , उसमे कीटनाशक का उपयोग किया जाता हैं। ताकि उसे आगे की बुवाई के लिए सुरक्षित रखा जा सके। ज्यादातर किसानो द्वारा फसल का भण्डारण जूट के थैलो या बोरियो में किया जाता है।


 * भण्डारण से पहले फसल को सूर्य की रौशनी में सूखने दे  

फसल की कटाई का काम ज्यादातर मशीनो द्वारा किया जाता  हैं ,जिसकी वजह से फसल में नमी होती हैं। यदि ऐसी ही फसल का भण्डारण किसान द्वारा किया जाता हैं तो फसल के खराब होने के ज्यादा अनुमान रहते है। इसीलिए फसल की कटाई के बाद ,कुछ दिनों के लिए फसल को सूर्य की रौशनी में सूखने दे ,ताकि उसमे नमी न रहे।


 * अनाज को अच्छे से साफ़ कर ले 

फसल की कटाई के वक्त बहुत से दाने टूट जाते हैं या फिर उसमे धूल मिट्टी हो सकती हैं अनावश्यक तिनके आ जाते हैं, जो की फसल की रौनक को कम करते है। फसल को स्टोर करने से पहले उसकी अच्छे से सफाई कर ले ,ताकि फसल को फफूंद जैसी समस्याओं से बचाया जा सके।

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 * फसल का स्टॉक साफ़ बोरों में करें 

कभी भी फसल का भण्डारण पुराने और पहले से इस्तेमाल किये गए बोरों में न करें, क्यूंकि फसल के खराब होने के और रोग लगने की ज्यादा संभावनाएं होती है। यदि किसानो द्वारा पुराने बोरों का उपयोग किया जा रहा हैं तो उन्हें अच्छे से धो लेना चाहिए। ताकि फसल में कोई भी रोग न लगे।


 * स्टॉक की गयी फसल के बोरों को दीवार से सटा कर न रखें

किसानो द्वारा फसल का भण्डारण जिन बोरों में किया जाता हैं उन्हें दीवार से सटा कर न रखें ,क्यूंकि बारिश आदि के मौसम में दीवारों पर सीलन या नमी आ जाती हैं ,जिसकी वजह से फसल पर भी इसका प्रभाव पड सकता हैं।  


 * फसल को कीटों से बचाने के लिए नीम के पाउडर का इस्तेमाल करें 

कभी कभी स्टॉक की गयी फसल में घुन आदि जैसे कीट लग जाते हैं ,जो फसल को अंदर से खोखला कर देते है। इन कीटों से बचने के लिए नीम से बने पाउडर का इस्तेमाल भी किसानो द्वारा किया जाता हैं। जिससे स्टॉक की गयी फसल को सुरक्षित रखा जा सके।


 *  फसल का स्टॉक यदि बोरों में किया जाता हैं ,तो निचे फर्श पर लकड़ी के तख्ते ,या फिर चटाई आदि बिछा दी जाती हैं ताकि फसल सुरक्षित रह सके। भंडारगृह को मैलाथियान के घोल से अच्छे से धो ले 

फसल का भण्डारण करते समय याद रखे , फसल को साफ़ जगह पर ही स्टोर करें। भंडारगृह में फसल का स्टॉक करने से पहले उसे मैलाथियान में पानी मिलाकर उसका घोल बनाकर भंडारगृह को धो दे। इससे फसल के खराब होने की बहुत ही कम सम्भावनाये होती है।

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फसल का स्टॉक करना बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। फसलों के सुरक्षित भण्डारण के लिए बहुत सी वैज्ञानिक तकनीके अपनायी जाती हैं। इन तकनीकों की वजह से फसल में लगने वाले फफूंद, कीटों आदि से बचाया जा सकता है। लेकिन कभी कभी लोगों को भण्डारण की सम्पूर्ण जानकारी न होने की वजह से आधी से ज्यादा फसल का नुक्सान हो जाता हैं। 


भण्डारण के दौरान फसल को किस्से संरक्षित रखना चाहिए 

जब किसानो द्वारा फसल का भंडारण किया जाता हैं तो ,फसल को नमी , कीड़ों और चूहों से बचाना चाहिए। फसल में अगर ज्यादा नमी होती हैं तो ये सूक्ष्मजीवों के विकास को बढ़ावा देती है। इसी वजह से भण्डारण करना आवश्यक बताया जाता हैं। ताकि फसल को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकें। फसलों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिए भण्डारण किया जाता हैं। छोटे किसानो द्वारा सिर्फ अपने उपभोग के लिए फसल का उत्पादन किया जाता है, लेकिन बड़े पैमाने पर फसल का उत्पादन सिर्फ विपणन के लिए किया जाता हैं। भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए भण्डारण किया जाता है। फसलों का भण्डारण ज्यादातर प्राकृतिक आपदाओं से  निपटने के लिए भी किया जाता हैं ,जैसे बाढ़ आना ,सूखा पड़ना आदि। फसलों के भंडारण के लिए सही स्थान की व्यवस्था होनी चाहिए। भण्डारण करते समय ध्यान रहे फसल में नमी न हो , नमी की वजह से पूरी फसल खराब हो सकती हैं।